मौद्रिक दरें:
१)
सी.आर.आर.(नकद
आरक्षण अनुपात):- सी.आर.आर. वह धन है जो बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ
इंडिया के पास गारंटी के रूप में रखना होता है.
२)
बैंक दर :-
जिस दर पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है बैंक दर कहलाती है.
३)
वैधानिक तरलता
अनुपात (एस.एल.आर.):- किसी आपात देनदारी को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक
बैंक अपने प्रतिदिन कारोबार नकद सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में
एक खास रकम रिजर्व बैंक के पास जमा कराते है जिस एस.एल.आर. कहते है..
४)
रेपो रेट:-
रेपो दर वह है जिस दर पर बैंकों को कम अवधि के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज मिलता है.
रेपो रेट कम करने से बैंको को कर्ज मिलना आसान हो जाता है.
५)
रिवर्स रेपो रेट:-
बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपना धन जमा करने के उपरांत जिस दर से ब्याज मिलता
है वह रिवर्स रेपो रेट है..
लीड
बैंक योजना :- जिलों कि
अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से इस योजना का प्रारंभ १९६९ में किया गया.
जिसके तहत प्रत्येक जिले में एक लीड बैंक होगा जो कि अन्य बैंकों कि सहायता के साथ
साथ कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय संस्थाओ के बीच समन्वय स्थापित करेगा.
निष्पादन
बजट:- कार्यों के परिणामों या निष्पादन
को आधार बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट है इसे कार्यपूर्ति बजट भी कहते है.
जीरोबेस
बजट:- इस बजट में किसी विभाग या संगठन कि
प्रस्तावित व्यय मांग के प्रत्येक मद को शुन्य मानते हुए पुनर्मूल्यांकन किया जाता
है. भारत में इसे सर्वप्रथम “काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड
इंडस्ट्रियल रिसर्च (CISR)” में लागू
किया गया और १९८७-८८ से सभी विभागों व मंत्रालयों में लागू हो गया.
आउटकम
बजट :- इसके तहत प्रत्येक विभाग/ मंत्रालय
के भौतिक लक्ष्यों को अल्प अवधि में निरीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए रखा जाता है.
जेंडर
बजट :- इस बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं
के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों और योजनाओं के
क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का प्रावधान बजट में करती है.
प्रत्यक्ष
कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता
(सरकार) और करदाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है. अर्थात जिसके ऊपर कर लगाया
जा रहा है सीधे वही व्यक्ति भरता है.
अप्रत्यक्ष
कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता
(सरकार) और भुगतानकर्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात जिस
व्यक्ति/संस्था पर कर लगाया जाता है उसे किसी अन्य तरीके से प्राप्त किया जाता है.
राजस्व
घाटा :- सरकार को प्राप्त कुल राजस्व एवं
सरकार द्वारा व्यय किये गए कुल राजस्व का अंतर ही राजस्व घाटा है.
राजकोषीय
घाटा :- सरकार के लिए कुल प्राप्त राजस्व,
अनुदान और गैर-पूंजीगत प्राप्तियों कि तुलना होने वाले कुल व्यय का अतिरेक है
अर्थात आय(प्राप्तियों) के सन्दर्भ में व्यय कितना अधिक है.
बॉण्ड
अथवा डिबेंचर :- ऐसे ऋण
पत्र होते है जिन्हें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा कोई संसथान जारी करता है इन
ऋण पत्रों पर एक निश्चित अवधि पर निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है.
प्रतिभूति
:- वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयर,
डिबेंचर, व अन्य ऋण पत्रों के लिए संयुन्क्त रूप से प्रतिभूति शब्द का प्रयोग किया
जाता है. बैंकिग में भी ऋणों कि जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग
होता है.
विवेकानंद उर्जा पुंज, जबलपुर (म.प्र.)
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